छग आदिवासी विद्रोह महत्वपूर्ण समान्य ज्ञान :-
छग में आदिवासियों का विद्रोह काफी महत्वपूर्ण रहा है चाहे वो ब्रिटिस काल में हो या उससे पहले के कालखंड में तो आइये आज आदिवासियों की संघर्ष विद्रोह का विश्लेषण करते है जो हर cgpsc या छग govt जॉब तैयारी कर रहे है उनके लिये काफी महत्वपूर्ण होने वाला है |
परलकोट विद्रोह (1824-25)
- बस्तर स्थित परकोट का जमींदार गेंदसिंह थे। यहां मराठों एवं ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा अबूझमाड़ियों का भरपूर शोषण किया जा रहा था। फलस्वरूप गेंदसिंह के आवाहन पर आदिवासियों ने 24 दिसंबर 1824 में विद्रोह किया।
- विद्रोह के प्रतीक के रूप में धावड़ा वृक्ष की शाखाओं को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजा गया। इस विद्रोह के परिणामस्वरूप गेंदसिंह को 20 जनवरी 1825 को फांसी की सजा दी गई। गेंदसिंह को बस्तर के प्रथम शहीद के रूप में जाना जाता है।
मेरिया विद्रोह (1842-1862)
- दतेवाड़ा में स्थित दंतेश्वरी मंदिर में मेरिया/ नरबलि की परंपरा आदिवासियों द्वारा पूर्ण की जाती थी। ब्रिटिश सरकार ने इसे रोकने हेतु दंतेश्वरी मंदिर में एक सैन्य टुकड़ी नियुक्त कर दी थी। हिड़मा मांझी के नेतृत्व में आदिवासियों ने इस सैन्य दल को हटाने की मांग की और विद्रोह कर – दिया।
- इस विद्रोह के समय शासक भूपालदेव थे। जांचकर्ता मैकपर्सन व दमनकर्ता कैम्पबेल थे। अंग्रेजों ने इस विद्रोह का कठोरतापूर्वक दमन कर दिया।
लिंगागिरी विद्रोह (1856)
- बस्तर राज्य के भोपालपट्टनम ज़मींदार के अंतर्गत लिंगागिरी तालुका था, यहां के तालुकेदार धुर्वाराम ने अंग्रेज के विरूद्ध सशस्त्र विद्रोह किया।
- 3 मार्च 1856 को अंग्रेजों और धुर्वाराम के बीच भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें धुर्वाराम गिरफ्तार कर लिया गया और 3 मार्च 1856 को उसे फांसी दे दी गई।
- बस्तर को अंग्रेजी साम्राज्य में शामिल किये जाने के विरोध में यह विद्रोह हुआ इसे 1857 की क्रांति के पूर्व बस्तर में होने वाले महान मुक्ति संग्राम के रूप में जाना जाता है।
कोई विद्रोह (1859)
- दक्षिण बस्तर में शोषण एवं उनकी दूषितवन नीतियों के कारण आदिवासी असंतुष्ट थे । पोतकेल के ज़मींदार नागुल दोरला ने अग्रेंजों के विरुद्ध विद्रोह किया।
- विद्रोही ने एक साल वृक्ष के पीछे एक सीर का नारा दिया। कैप्टन ग्लास ने विद्रोहियों से समझौता कर लिया और साल वृक्षों की कटाई रोक दी गई। इस दिवस को बस्तर में काला दिवस मनाया गया।
मुरिया विद्रोह (1876)
- अंग्रेजों की शोषक नीतियों से त्रस्त होकर बस्तर के मुरिया आदिवासियों ने विद्रोह कर दिया, जिसका नेतृत्व झाडा सिरहा ने किया।
- आम की शाखाओं को प्रतीक के रुप में न भेजकर विद्रोहियों को एकत्रित किया गया। 2 न मार्च 1876 को विद्रोहियों ने राजा भैरमदेव के महल को घेर लिया। 4 मई 1876 में कमिश्नर मैकजार्ज ने विद्रोह का दमन किया। इसके बाद अंग्रेजों ने आदिवासी के हित में अनेक प्रशासनिक सुधार किये।
भूमकाल विद्रोह (1910)
- बस्तर मे भूमकाल का अर्थ होता है-भूमि कंपन या भूकंप। भूमकाल विद्रोह ‘वस्तर बस्तरवासियों का है।’ के नारे के साथ शुरू हुआ। – बस्तर की राजमाता स्वर्ण कुवर ने युवराज लाल कालेन्द्र सिंह के साथ मिलकर आदिवासियों को विद्रोह हेतु प्रेरित किया।
- वीर गुण्डाधुर को इस क्रान्ति का नेता बनाया गया।
- विद्रोह में प्रतीक के रूप में लाल मिर्च, मिट्टी का हेला, आम की शाखाएं तथा धनुष-बाण का प्रयोग किया गया।
- 1 फरवरी 1910 को विद्रोह शुरु हुआ, विद्रोहियों ने गुण्डाधुर के नेतृत्व में अंग्रेजों से जमकर संघर्ष किया।
- अंग्रेज कमांडर गेयर ने विद्रोहियों का दमन किया। महारानी स्वर्ण कुवर एवं लाल कालेन्द्र सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया।
- लाल कालेन्द्र सिंह को एलिचपुर में निर्वासित जीवन जीना पड़ा, जहां 1916 में उनका निधन हो गया। महारानी स्वर्ण कुंवर रायपुर जेल में शहीद हो गई तथा गुण्डाधुर अपने साथी डिबरीघुर के साथ वनों में विलिप्त हो गये। सोनू माझी नामक आदिवासी ने विश्वासघात कर दिया अन्यथा अंग्रेजों को बस्तर से पलायन करना पड़ता । इस विद्रोह के परिणाम स्वरुप अंग्रेजों ने आदिवासी से जुड़ने का प्रयास किया |
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